हेट स्पीच
रोहित शर्मा द्वारा संपादित
समाजीकरण और मनोरंजन से गृह-कार्य तक, आज के युग में इंटरनेट युवाओं के लिए जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुका है। यह लोगों को एक दूसरे से जोड़ने और उनसे सीखने के लिए बड़े अवसर प्रदान करता है। परंतु, इसकेबावजूद इंटरनेट में समाज में कई नकारात्मक प्रभाव बनाने की क्षमता है ।इंटरनेट घृणित व हिंसक प्रचार करने के लिए चरमपंथियों को शक्तिशाली उपकरण भी प्रदान करता है, जो वैश्विक स्तर पर कट्टरपंथी समुदायों के सृजन एवं कट्टरपंथीकरण को बढ़ावा देता है।
हेट स्पीच अभिव्यक्ति तथा व्यक्तिगत, समूह और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की आज़ादी के साथ एक जटिल गठबंधन में निहित है। इसके साथ साथ हेट स्पीच गरिमा, स्वतंत्रता और समानता की अवधारणाओं का भी समावेश है । इसकी परिभाषा अक्सर विवादास्पद रही है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कानून में, घृणास्पद भाषण उन अभिव्यक्तियों को संदर्भित करता है जो उत्तेजना से नुकसान पहुंचाने के (विशेष रूप से, भेदभाव, शत्रुता या हिंसा) हिमायती रहे है। इस बदलाव का प्रयोजन एक निश्चित सामाजिक या जनसांख्यिकीय समूह के साथ पहचाना जा रहा है। वह भाषण इसमें शामिल हो सकते हैं, जो हिंसक कृत्यों की वकालत करते हैं, धमकाते हैं, या प्रोत्साहित करते हैं। कुछ समूहों के लिए, हालांकि, इसकी संकल्पना उन अभिव्यक्तियों तक भी फैली हुई है जो पक्षपात और असहिष्णुता के माहौल को बढ़ावा देती है और भेदभाव, शत्रुता और हिंसक हमलों को बढ़ावा दे सकता है।
आम तौर पर, हेट स्पीच की परिभाषा विस्तृत है, कभी-कभी उन शब्दों को शामिल करके इसकी परिभाषा का विस्तार किया जाता है, जो अधिकतर उच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों के लिए अपमान-जनक सिद्ध होते हैं। , घृणास्पद भाषण की संकल्पना के साथ छेड़छाड़ की संभावना विशेष रूप से महत्वपूर्ण समय पर, जैसे कि चुनाव के दौरान होती है। यहाँ तक की आरोप यह भी लगता है कि हेट स्पीच का उपयोग राजनैतिक विरोधी व सत्ता में बैठे लोगों द्वारा एक दूसरे के प्रति असीमित अंसतोष व आलोचना को जन्म देने के लिए भी किया जाता है।
ऑनलाइन हेट स्पीच का प्रसार एक नूतन और तेज़ी से विकसित घटना है और इसकी महत्वता,
प्रभाव और परिणामों को समझने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।
हेट स्पीच के प्रचार-प्रसार में सोशल मीडिया की भूमिका:
गौरतलब है पिछले कुछ समय में हेट स्पीच के प्रचार प्रसार में [WU1] सोशल मीडिया मुख्यतः एक नए औज़ार के रूप में उभरा हैI यह भयप्रद औजार प्रमुखता से धर्म के आधार पर नफरत फैलाने का काम कर रहा है। इसका उपयोग उपद्रवी तत्वों द्वारा प्रचार-प्रसार के घिनौनें तरकीबों से समाज की एकता और शांति में विघ्न उत्पन्न करने के लिए होता है।समाज की शांति को भंग कुछ इस प्रकार किया जाता है, जिससे इसके स्रोत व उपयोगकर्ता की जानकारी सुनिश्चित करना नामुमकिन सा साबित होता है।
इंटरनेट पर वार्तालाप, विशेषतःसोशल मीडिया पर, अक्सर उन बातचीत की प्रतिबिंब होती है जो बातें ऑफ़-लाइन होती है। हालांकि, ऑनलाइन बातचीत का एक लाभ यह होता है की यह आपके आस-पास मौजूद लोगों के एक छोटे समूह तक सीमित नहीं होती। भूगोल और समय की बाधाएं ऑनलाइन बातचीत में मौजूद नहीं हैं, क्योंकि कोई भी व्यक्ति, किसी भी समय ऑनलाइन बातचीत में शामिल हो सकता है और इस चर्चा में अपने विचारों का योगदान कर सकता है ।
वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट 2016 के अनुसार ,भारत में हेट स्पीच के प्रचार-प्रसार में सोशल मीडिया का बहुत ही अहम योगदान है, जिसका कारण भारत की दुनिया की इंटरनेट सेवा की उपयोगिता में 30% हिस्सेदारी है। ) द नेक्स्ट वेब रिपोर्ट 2017 के अनुसार विश्व की अग्रणी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट, फेसबुक का उपभोक्ता आधार भारत में 24 करोड़ के आंकड़े को पार कर चुका है। )।
इसके अतिरिक्त यरल रिपोर्ट 2016 के अनुसार, 13.6 करोड़ भारतीय सोशल मीडिया प्लैटफ़ार्म पर अपनी सक्रियता दर्ज करवा रहे हैI
अगर सोशल मीडिया प्लेटफार्म की बात की जाए, तो व्हाट्सअप के महत्व को कम आंकना मुनासिब नहीं होगा I इसका मतलब यह है की वर्त्तमान में युवाओं की कार्यशैली में व्हाट्सएप के उपयोगिता को अन-देखा नहीं कर सकते हैं, जो मैशबल संस्था, 2017 के अनुसार भारत में 20 करोड़ से अधिक उपयोगकर्ताओं तक पहुंच गया है। इसका मतलब है कि भारत में 20 करोड़ उपभोक्ता व्हाट्सएप में दैनिक आधार पर संदेशों का आदान-प्रदान कर रहे हैं। इस प्रकार, संचार के सबसे लोकप्रिय चैनलों के रूप में से एक, सोशल मीडिया हेट स्पीच से लड़ने के साथ साथ बढावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। वास्तव में, यह एक शक्तिशाली उपकरण है जो टेलीविजन के रूप में अपने ऑडियो-विजुअल के फायदों के साथ निहित है।
वर्ष 2015 में पिउ रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के अनुसार भारत सामाजिक शत्रुता सूचकांक में चौथे स्थान पर आता है(10 में से 8.7 सूचकांक मूल्य)I इस मूल्यांकन के अनुसार भारत से ख़राब मात्र 3 देश क्रमशः सीरिया, नाइजीरिया और इराक़ हैं । यह भारत में धर्म उन्मुख मुद्दों पर चिन्तनीय स्थिति को दर्शाता है । ।
हालांकि यह प्रवृत्ति भारत तक सीमित नहीं है। यह धार्मिक कट्टरपंथवाद विश्व के कई अन्य देशों में भी दिखाई देता है। पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे दक्षिण एशियाई देशों ने भी, न सिर्फ राज्य बल्कि कट्टरवादी समूहों द्वारा अभिव्यक्ति की आज़ादी को अन-देखा किया है, जो देश, धर्म या समुदायों की रक्षा करने का दावा करते हैं।
भारत में पत्रकारों को उनकी रिपोर्टिंग पर अक्सर मौत की धमकी मिलना व उनके खिलाफ एक नफरत भरा अभियान चला कर उन्हें प्रताड़ित करने की क्रियाएँ आम है, जिसका सीधा साधा प्रतिफल भारत को प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक2018 में 180 देशों में 138 वा स्थान मिलना है । लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ प्रेस की स्वतंत्रता की बात करता है, जो प्रदर्शित करता है कि प्रेस की स्वतंत्रता के साथ कोई समझौता नहीं होना चाहिए I अगर प्रेस पर सरकारों का नियंत्रण होगा तो वह जनता तक वही समाचार और ख़बरें पहुंचाएगी जो सरकार के हितों की वकालत करते हैं या सरकार को मसीहा के रूप में प्रदर्शित करते हैं। प्रेस से छेड़खानी अप्रत्यक्ष रूप से जनता के अधिकारों का उल्लंघन है क्यूंकि स्वतंत्र पत्रकारिता का काम है जनता तक बिना किसी डर या दबाव के सही व सटीक समाचार पहुंचाना जो एक लोकतांत्रिक देश के मूल्यों को दर्शाता है।
हाल ही में हेट स्पीच का तुलनात्मक रूप से उदाहरण लिया जाए तो प्रसिद्ध फ्रीलैनसर पत्रकार राणा अय्युब को 2002 के गुजरात-दंगे पर लिखी किताब ‘गुजरात फाइल्स’ को प्रकाशित करने के बाद से हेट स्पीच का सामना करना पड़ा जिसमें उनके खिलाफ एक स्पष्ट रूप से संघटित सोशल मीडिया अभियान द्वारा उन्हें टारगेट किया गयाI इस अभियान के तहत उनके खिलाफ आरोप लगाया की वह चाइल्ड रेपिस्ट को समर्थन करती हैI
इस के अलावा उनके खिलाफ अस्वीकृत व्यव्हार एवं फूहड़ भाषा का प्रयोग करके उनके साथ बलात्कार करने तक की धमकी दी गयी। राणा अय्युब के अनुसार यह अभियान सीधे सीधे उनके विगतकाल में किये गए स्टिंग ऑपरेशन का प्रभाव है। उन्होंने गुप्त रूप से दर्ज साक्षात्कारों का इस्तेमाल किया था, जो 2002 के गुजरात दंगों को बढ़ाने में नौकरशाहों और राजनेताओं के मेल-जोल के बारे में बताते थेI
इस श्रृंखला में दूसरा उदाहरण एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार का है, जो अपने बेबाक विश्लेषण के लिए जाने जाते हैंI वह भी पिछले कुछ दिनों से ऑनलाइन ट्रोलिंग का शिकार हो रहे हैं जिसमें उन्हें एक वीडियो मैसेज द्वारा जान से मारने तक की धमकी तक दी गयी जिसे रवीश बताते है कि “यह सब अच्छी तरह से संगठित प्रयास है जिसे राजनीतिक मंजूरी प्रदान है”। हेट स्पीच का उल्लेख ख़ाली पत्रकारों के खिलाफ ही नहीं अपितु बॉलीवुड कलाकारों के खिलाफ भी है I हाल ही में कई दुर्भाग्यपूर्ण प्रदर्शनों मेंदीपिका पादुकोण, रणवीर सिंह और संजय लीला भंसाली को फिल्म पद्मावती पर अत्यधिक नफरत और धमकी भरे संदेश प्राप्त हुए हैं क्योंकि लोगों के एक समूह ने बिना फिल्म देखे यह आंकलन कर लिया कि यह फिल्म उनकी भावनाओं को चोट पहुंचाती है।
ये घटनाएँ पुष्टि करती हैं कि सोशल मीडिया हेट स्पीच बनाने और फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैI और इसका इस्तेमाल हिंसा को उकसानें के स्पष्ट एजेंडे के साथ- साथ सांप्रदायिक और धार्मिक हेट स्पीच को बढ़ावा देने के लिए किया गया है।
ऑनलाइन घृणास्पद भाषण की घटनाओं को वास्तव में रोकने के लिए, एक बड़े अभियान की आवश्यकता है जो लोगों को संवेदनशील बनाकर उनमें बोलने की आज़ादी और नफरत भरे भाषणों के बीच अंतर स्पष्ट करने में मददगार साबित हो सके। इस अभियान के प्रति भागीदारी आपकी और मेरी ही नहीं अपितु प्रत्येक व्यक्ति की ज़िम्मेदारी है कि इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री का उत्पादन व उपभोग आँखों पर पट्टी बाँधकर एक मंद-उपभोक्ता की तरह नहीं अपितु समझदारी एवं बुद्धिमत्ता के साथ करना चाहिए।
ऑनलाइन हेट स्पीच से निपटने के लिए प्रभावी कानून की आवश्यकता:
ऊपर दिए गए दृष्टांत एवं तर्क इस और इशारा करती हैं कि बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए हेट स्पीच एक जटिल चुनौती है। भारत के उच्चतम न्यायालय ने भी इस बात को तब महसूस किया जब उन्होंने विधि आयोग की राय-मशविरा मांगी कि किन क़ानूनों से चुनाव आयोग को हेट स्पीच से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए सशक्त किया जाए।
ऑनलाइन "हेट स्पीच" के लिए एक अलग कानून तैयार करने की दिशा में गृह मंत्रालय ने विधि आयोग को एक कानूनी मसौदा तैयार करने के लिए लिखा है। इसमें निर्धारित प्रावधान, सोशल मीडिया और ऑनलाइन मैसेजिंग अनु-प्रयोगों के माध्यम से भेजे गए संवेदनशील व भड़काऊ संदेशों से निपटने में उपयोगी होंगे जो सामाजिक विकार को नियंत्रित करेगा।
यह निर्णय तब लिया गया जब पूर्व लोकसभा महासचिव टी के विश्वनाथन की अध्यक्षता में घटित समिति ने ऑनलाइन हेट स्पीच के प्रचार-प्रसार को नियंत्रण में रखने के लिए कड़े कानूनों की सिफ़ारिश की। यह पैनल सूचना प्रोद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66ए के सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 2015 में निरस्त होने के बाद गठन किया गया था ।
मार्च 2017, में विधि आयोग द्वारा सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस बी एस चौहान की अध्यक्षता में दो नए प्रावधानों को आईपीसी में सम्मालित होने की सिफ़ारिश की गयी जो की प्रवासी भलाई संगठन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया 2014 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश पर कार्य कर रहा था। इसमे कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा की हेट स्पीच को समानता के अधिकार के शीशे से देखा जाना चाइए, और बताया की हेट स्पीच को केवल एक व्यक्ति के खिलाफ अपमानजनक स्पीच के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि यह कुछ समूहों के भीतर शामिल व्यक्तियों को भी भेदभाव या हिंसा के लिए उत्तेजित करता है जो उस समूह की प्रतिष्ठा पर सवालिया निशान खड़ा करता है।
आयोग द्वारा सुझाए गए आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक, 2017 के अनुसार आईपीसी में धारा 153 सी और धारा 505 ए को सम्मलित करने और आपराधिक प्रक्रिया संहिता में आवश्यक परिवर्तन करने का प्रस्ताव है।
प्रस्तावित धारा 153 सी (बी) आईपीसी- नफरत को प्रोत्साहित करने पर 'सिफ़ारिश करती है कि अपराध करने पर दो साल की कारावास और ₹ 5,000 जुर्माना या दोनों ही दंडनीय होंगे।
प्रस्तावित कानून कहता है, "जो भी धर्म, जाति, या समुदाय, लिंग, लिंग पहचान, यौन अभिविन्यास, जन्म स्थान, निवास, भाषा, विकलांगता या जनजाति के आधार पर संचार के किसी भी साधन का उपयोग करता है - (ए) गंभीर चोट या चेतावनी का डर पैदा करने के इरादे से किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को धमकाने के लिए; या (बी) वकालत करता है किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह की ओर घृणा पैदा करने की या जो अपराध करने के लिए उत्तेजना का कारण बनता है।"
दूसरा जोड़ा जाने वाला प्रस्तावित प्रावधान धारा 505 आईपीसी कहता है, "जो कोई भी जानबूझकर सार्वजनिक रूप से उन शब्दों का उपयोग करता है, या किसी भी लेखन, चिन्ह, या अन्य दृश्य-मान को प्रदर्शित करता है जो गंभीर रूप से खतरनाक, या अपमान-जनक है; (i) किसी व्यक्ति की सुनवाई या दृष्टि के भीतर, भय या चेतावनी, या; (ii) गैर-कानूनी हिंसा के उपयोग को उत्तेजित करने के इरादे से, उस व्यक्ति या किसी अन्य के खिलाफ, उसके लिए एक वर्ष की कारावास या रु 5000 जुर्माना और दोनों लगाया जा सकता है।“
ऑनलाइन हेट स्पीच के प्रचार-प्रसार को रोकने के लिए अन्य कुछ कदम:
1) जर्मनी का कानून एक विनियनमक मॉडल के रूप में स्वीकार किया जा सकता है:
वर्ष 2017 में जर्मनी में नया कानून पारित किया गया जिसके अंतर्गत कंपनियों को 24 घंटो के भीतर हेट स्पीच से संबंधित सभी सामग्री हटाने का दायित्व है। इस कानून के जवाब में इसके मात्र सोशल नेटवर्किंग साइट फ़ेसबुक ने ही 1,200 लोगों की भर्तियाँ की ताकि जर्मन नागरिकों द्वारा इसके दुरुपयोग का प्रभावी ढंग से पता लगाया जा सके और इसे हटाया जा सके। अगर कंपनी अपने कार्य में असफल होती है, तो नियामक संस्था उस कंपनी पर $79 मिलियन(करीब 545 अरब) का जुर्माना लगा सकता है।
2) आर्टिफ़िश्यल इंटेलिजेंस का उपयोग:
एन्टीसेमिटिजम साइबर निगरानी प्रणाली एक ऐसा उपकरण है जो सोशल मीडिया पर एन्टीसेमिटिजम (यहूदी विरोधी भावना) की जांच करता है, यह इजरायली डायस्पोरा अफेयर्स मिनिस्टरी द्वारा निर्मित है और यह मार्च 2018 में सम्पन्न हुई ग्लोबल फोरम फॉर कोम्बाटिंग एन्टीसेमिटिजम की बैठक में प्रमोचित किया जा चुका है।
यह उपकरण मूल-पाठ के विश्लेषण के लिए उपयोग किया जाता है जो शब्दों, वाक्यांशों और प्रतीकों के लिए सोशल मीडिया साइटों को खोज कर काम करता है जिन्हें संभावित एंटीसेमेटिक सामग्री के संकेत के रूप में पहचाना गया है। उपकरण फिर सामग्री की समीक्षा करता है और इंटरेक्टिव ग्राफ़ उत्पन्न करता है।
निष्कर्ष:
ऑनलाइन दुष्प्रचार समाज की शांति व एकता को खंडित करने के लिए एक नए शत्रु के रूप में जन्मा है, पिछले 10 वर्षो में भारतीयों की इंटरनेट पर सक्रियता व सोशल मीडिया नेटवर्किंग साइट से जुड़ाव इस बात का संकेत है कि भविष्य में संपूर्ण विश्व में इंटरनेट क्रांति भारत से ही प्रज्ज्वलित होगी। यूं तो समाज में दुष्प्रचार व घृणा फैलाने के लिए तमाम तरकीब है, पर ऑनलाइन तकनीक का सहारा लेकर कुछ असामाजिक तत्व अपने कट्टरपंथी सिद्धांतों को न छोड़कर समाज को बांटने का काम करते हैंIयह आम तौर पर चुनावों के दौरान एक धर्म को दूसरे धर्म से लड़वाने का काम करते हैं जिससे चुनावों में वोटों का ध्रुवीकरण हो सके और इनकी मनचाही राजनैतिक पार्टी को इसका फायदा मिल सके। सबसे बड़े खेद की बात ये है कि इस हेट स्पीच में सभी राजनैतिक दल कहीं न कहीं लिप्त है। और अंत में इस पूरे प्रकरण में सबसे बड़ा नुकसान भारत की जनता वहन करती है।
दुनियाभर में एक दूसरे को संयोजित रखने में इंटरनेट अपनी बड़ी भूमिका अदा कर रहा है, पर समाज में शांति, स्थिरता व एकता को संजोये रखने में यह एक चुनौती भी खड़ी कर रहा है। इसका मुख्य कारण यह है इंटरनेट वह माध्यम है जो चंद पलों में अफ़वाहों के बाज़ार को गर्म कर सकता हैI और यही गर्मी आग का भयावह रूप लेकर समाज को भड़काने के लिए काफी होती है जिसके उपरांत समाज कई गुटों में टूटकर खोखला हो जाता है। यह भयावह स्थिति अधिकांश घटनाओं में मनुष्य के नियंत्रण के बाहर होती है। इसलिए हमे इंटरनेट का उपयोग समाज के उत्थान के लिए करना चाहिए ना कि उसके वित्थान के लिए।