मानहानि
रोहित शर्मा द्वारा संपादित
परिचय
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है एवं समाज में पहचान हासिल करना हर मनुष्य का एक निरंतर प्रयत्न होता है। मान, मर्यादा, इज्ज़त एवं प्रतिष्ठा मानविक जीवन के अभिन्न अंग हैं। ये मनुष्य के पहचान के उन पहलुओं में से हैं जो उसकी सामाजिक प्रकृति के मौलिक गुण हैं। मानहानि व्यक्ति के इन पहलुओं को क्षीण करने की कोशिश करता है। इसलिए हमारे संविधान ने प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रतिष्ठा एवं सम्मान को बचाने के लिए अधिकार प्रदान किये हैं, जिसका उपयोग वह मानहानि के विरुद्ध कर सकता है |
इस तर्क की तह तक जाने से पहले मानहानि के कानून के बारे में जानना ज़रूरी है । मानहानि का कानून समाज और व्यक्ति के बीच एक संघर्ष है, जहाँ एक तरफ, संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत मुक्त भाषण का मौलिक अधिकार है, वहीं दूसरी ओर व्यक्ति की प्रतिष्ठा का अधिकार है | इन दिनों आपराधिक मानहानि का दुरुपयोग एक उपकरण के रूप में भाषण तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए किया जा रहा है |
मानहानि विधि का वर्तमान परिदृश्य
भारत में मानहानि दोनों, दीवानी (civil) और फौजदारी (criminal) अपराध है। दीवानी कानून के तहत, अपमानित व्यक्ति अपने अपमान को साबित करने के लिए उच्च न्यायालय या निचली अदालत में जा सकता है और आरोपी से आर्थिक मुआवजे की मांग कर सकता है।
पिछले कुछ समय में आपराधिक मानहानि खबरों में है क्योंकि इस संकल्पना के बारे में कई प्रश्न उठाए गए हैं कि जिसमे सर्वप्रथम प्रश्न यह है कि क्या इसे आपराधिक (criminalised) बनाया जाना चाहिए या फिर दीवानी अपराध (civil offence) बनाया जाना चाहिए। इस बहस के जवाब में यह तर्क दिया जाता है कि आपराधिक मानहानि का भारतीय संविंधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदान किए गए भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा, इसलिए इसे दीवानी अपराध बनाने के लिए मांगें उठाई गई हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले “सुब्रह्मण्यम स्वामी बनाम केंद्र सरकार” में डिवीजन खंडपीठ में मुख्य न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति पी. सी. पंत ने कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार में ख्याति का अधिकार (Right to reputation) शामिल है। बेंच ने सुब्रमण्यम स्वामी, राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया है जो भारत में आपराधिक मानहानि से संबंधित कानून को चुनौती दे रहे थे और इसके साथ साथआपराधिक मानहानि को भारतीय दंड संहिता की धारा 499 से 502 के अंतर्गत संवेधानिक तौर से वैध घोषित किया है |[1]
आपराधिक मानहानि क्या है?
भारतीय दंड संहिता की धाराएं 499 से 502 मानहानि से सम्बंधित है |अगर कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को अपमानित करता है तो अपमानित व्यक्ति उसके खिलाफ न्यायालय जा सकता है | भारतीय दण्ड संहिता की धारा 500 के अंतर्गत मानहानि कारित करने वाले को दो साल की सजा का प्रावधान है | इसका यह तात्पर्य नहीं है कि मानहानि मात्र व्यक्ति विशेष के खिलाफ हो सकती है। मानहानि व्यक्ति के साथ साथ राष्ट्र एवं समुदाय के खिलाफ भी किया जा सकता है।
राज्य के खिलाफ मानहानि भारतीय दंड संहिता की धारा 124 A में निहित है जिसको देशद्रोह (Sedition) कहा जाता है | किसी समुदाय के खिलाफ मानहानि भारतीय दंड संहिता की धारा 153 में निहित है, जिसे उपद्रव (Riot) कहा जाता है |
भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के तहत के अनुसार मानहानि-
“जो कोई बोले गए या पढ़े जाने के लिए आशयित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या चित्रों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि की जाए, या यह जानते हुए या विशवास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से उस व्यक्ति की अपहानि होगी, सिवाय अपवादों के, तो वह व्यक्ति मानहानि करता है|”
स्पष्टीकरण 1 के अनुसार मृत व्यक्ति पर लांछन लगाना भी मानहानि की कोटि में आ सकता है यदि वह लांछन उस व्यक्ति की ख्याति, यदि वह जीवित होता, को अपहानि करता, और उसके परिवार या अन्य निकट सम्बन्धियों की भावनाओं को उपहत करने की लिए आशयित हो |
स्पष्टीकरण 2. -किसी कंपनी या किसी संगठन या व्यक्तियों के संग्रह से संबंधित अपमान करना मानहानि हो सकता है।
स्पष्टीकरण 3.- अनुकल्प के रूप में या व्योंगोक्ति के रूप में अभिव्यक्त लांछन मानहानि की कोटि में आ सकता है |
स्पष्टीकरण 4 कोई लांछन किसी व्यक्ति की ख्याति की अपहानि करने वाला नहीं कहा जाता जब तक कि वह लांछन दूसरों की दृष्टि में प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: उस व्यक्ति के सदाचारिक या बौद्धिक चरित्र को हानि न करे या उस व्यक्ति की जाति या उसकी आजीविका के सम्बन्ध में उस व्यक्ति अपहानि न करता हो | या उस व्यक्ति की साख को नीचे न गिराए या यह विशवास न कराए कि उस व्यक्ति का शरीर घृणोत्पादक दशा में है या ऐसी दशा में है जो साधारण रूप से नीकृष्ठ समझी जाती है |
अपवाद:
अपवाद 1 : सत्य बात का लांछन लगाया जाना या प्रकाशित किया जाना जो लोक कल्याण के लिए उपेक्षित है, मानहानि नहीं है |
अपवाद 2 : उसके लोक कृत्यों के निर्वहन में, लोक सेवक के आचरण के विषय में या उसके शील के विषय में, जहाँ तक उसका शील उस आचरण से प्रकट होता न कि उससे आगे, कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करता है मानहानि नहीं है |
अपवाद 3 : किसी लोक कल्याण प्रश्न के सम्बन्ध में किसी व्यक्ति के आचरण के बारे में, और उस के शील के बारे में, जहां तक उसका आचरण प्रकट होता है न कि उससे आगे कोई राय चाहे वह कुछ भी हो, सदभावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है|
अपवाद 4 : किसी न्यायालय की कार्यवाहियों या ऐसी किन्हीं कार्यवाहियों के सही रिपोर्ट को प्रकाशित करना मानहानि नहीं है |
अपवाद 5 : न्यायालय में मामले की गुणवत्ता या साक्ष्यों तथा अन्य व्यक्तियों का आचरण को सदभावपूर्वक अभिव्यक्त या प्रकाशित करता है तो मानहानि नहीं है, बशर्ते कि अदालत ने मामला तय कर लिया हो |
अपवाद 6 : किसी ऐसे कृति जो लोक के गुणागुण के बारे में जिसको उसके कर्ता ने लोक निर्णय के लिए रखा सदभावपूर्वक अभिव्यक्त या प्रकाशित करता है मानहानि नहीं है|
अपवाद 7: किसी अन्य व्यक्ति के ऊपर विधिपूर्वक प्राधिकार( lawful authority) रखने वाले व्यक्ति द्वारा सदभावपूर्वक (good faith) की गयी परिनिन्दा (censure) मानहानि नहीं है|
अपवाद 8: प्राधिकृत (authorised) व्यक्ति के समक्ष सदभावपूर्वक (good faith) अभियोग (accusation) लगाना मानहानि नहीं है |
अपवाद 9: अपने या अन्य व्यक्ति के हितों की संरक्षा के लिए किसी व्यक्ति द्वारा सदभावपूर्वक लगाया लांछन (imputation) मानहानि नहीं है |
अपवाद 10 : सावधानी जो व्यक्ति की भलाई के लिए, जिसे की वह दी गई है या लोक कल्याण के लिए आशयित हो मानहानि नहीं है |
अगर किसी व्यक्ति द्वारा दिया गया बयान इन स्थितियों में से किसी एक स्थिति में आता है तो वह आदमी मानहानि नहीं करता है तथा वह इस स्थिति में सुरक्षित है |
मानहानि करने के लिए निम्नलिखित तत्वों का होना आवश्यक होता है -
1. अपमानजनक टिप्पणी या बयान का होना चाहिए ।
2. अपमानित करने का आशय (intention) होना चाहिए ।
3. अपमानजनक टिप्पणी या बयान अभियोगी को लक्ष्य करके बोलना चाहिए ।
4. बयान या टिप्पणी का प्रकाशित होना पूर्ववर्ती शर्त है, यह अभियोगी के भी किसी और व्यक्ति को भी सूचित होना आवश्यक होता है।
5. बयान सामान्य प्रकृति का नहीं होना चाहिए ।
प्रकाशन (Publication)
प्रकाशन मानहानि करने के सबसे आवश्यक तत्वों में से एक है, क्योंकि प्रकाशन के कारण ही लोगों को अपमानजनक टिपण्णी, लिखित या अन्य प्रदर्शित चित्रण के बारे में जानने को मिलता है जिसके फलस्वरूप वह व्यक्ति अपमानित होता है |
आशय (Intention)
भारतीय दंड संहिता की धारा 499 यह स्पष्ट करती है कि आपराधिक मानहानि कारित करने के लिए दूसरे व्यक्ति को अपमानित करने का आशय (intention) होना चाहिए |
आशय में यह भी शामिल है कि व्यक्ति यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए लांछन लगाता या ऐसा प्रकाशन करता है कि ऐसे लांछन से उस व्यक्ति के मान की अपहानि होगी |
मानहानि - और उसके प्रकार
मानहानि दो प्रकार से हो सकती है| एक, जब कोई आदमी सार्वजनिक जगह पर ऐसे शब्द बोलता जिसकी वजह से दूसरे व्यक्ति की के मान की अपहानि होती है अथवा उस के मान को ठेस पहुँचती है, तो यह मौखिक मानहानि (slander) की श्रेणी में आता हैं|
दूसरा, जब कोईव्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की अपहानि लिखकर या चित्रण द्वारा करता है या कुछ प्रकाशित करके किसी व्यक्ति या किसी संस्था विशेष की छवि ख़राब करता है या ठेस पहुंचाता है तो वह लिखित मानहानि की श्रेणी में आता है और इस प्रकार की मानहानि को लिखित मानहानि (libel) कहा जाता है|
मानहानि कानून का महत्व
व्यक्ति की प्रतिष्ठा समाज में उसके लिए एक बहुमूल्य संपत्ति है, जो अक्सर उसे भौतिक संपदा प्राप्त करने में सक्षम बनाती है।
संविधान की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसमें निहित मौलिक अधिकार हैं | संविधान के मौलिक अधिकारों में से एक जीवन जीने का अधिकार (Right to Life) भी शामिल है | यह सबसे महत्वपूर्ण, मानव, मौलिक, अचूक, आनुवांशिक अधिकार है। स्वाभाविक रूप से और तर्कसंगत रूप से इस अधिकार को उच्चतम सुरक्षा की आवश्यकता होती है |
सर्वोत्तम न्यायालय की व्याख्या के अनुसार जीवन के अधिकार के तहत कई और अधिकार इसमें शामिल है | इसका एक विस्तारित अर्थ है, जिसमें जीने के अधिकार के अंतर्गत मानव गरिमा (right to human dignity), आजीविका का अधिकार (right to livelihood), स्वास्थ्य का अधिकार (right to health), प्रदूषण मुक्त हवा का अधिकार (right to pollution free air), आश्रय का अधिकार (right to shelter), गोपनीयता का अधिकार (right to privacy), इत्यादि शामिल है।[2]
संविधान के निर्माताओं को मानव गरिमा (Human Dignity) और पात्रता (worthiness) के महत्व के बारे में पता था, इसलिए उन्होंने भारतीय संविधान की प्रस्तावना में मानव गरिमा को शामिल किया।
यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि हर एक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह दूसरों की गरिमा का सम्मान करे और उसे अपमानित करने की चेष्टा न करे |
हमारे उच्चतम न्यायालय ने भी ये बात 2016 के एक मामले में स्पष्ट करी थी कि प्रतिष्ठा का अधिकार (Right to Reputation ) व्यक्तिगत सुरक्षा का एक तत्व है और समान रूप से स्वतंत्रता (liberty) संपत्ति (property), जीवन के आनंद के अधिकार (Right to the Enjoyment of Life) के साथ संविधान द्वारा संरक्षित किया गया है |[3]
अधिकांश न्यायप्रणालियों में मानहानि के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही के प्रावधान हैं, ताकि लोग विभिन्न प्रकार की मानहानियाँ तथा आधारहीन आलोचना ना करें |
व्यक्ति की प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए तथा उसकी प्रतिष्ठा की सुरक्षा करने के मानहानि के कानूनों का महत्त्व दिनों दिन बढ़ रहा है हालाँकि इन कानूनों दुरूपयोग भी बढ़ रहा है क्योकि मानहानि के कानूनों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए राजनितिक नेताओ तथा बड़े कॉर्पोरेट हाउसेस द्वारा एक उपकरण के रूप में उपयोग किया जाने लगा है |
पिछले कुछ वर्षों में भारत में मानहानि के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। राजनीतिक नेता एक दूसरे के खिलाफ निराधार कारणों पर मानहानि के मामले दर्ज कर रहे हैं, जिसके उपरांत सामने वाली पार्टी मानहानि का मामला दर्ज करवाती है। कई जानबूझकर नकली बयान, या तो लिखित या मौखिक, जो किसी व्यक्ति का सम्मान, या आत्मविश्वास कम करता है; या किसी व्यक्ति के खिलाफ अस्वीकार, शत्रुतापूर्ण, या असहनीय राय या भावनाओं को प्रेरित करता है |
स्वतंत्र अभिव्यक्ति में सामाजिक हित इस विचार पर आधारित है कि अभिव्यक्ति के बिना कोई समाज नहीं है, क्योंकि संचार (communication) सामाजिक जीवन का सार है |प्रतिष्ठा के अधिकार और भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के बीच संतुलन होना जरुरी है |
मानहानि पर मौजूदा कानून के साथ समस्याएं
कोई भी कानून पूर्ण नहीं होता है क्योंकि कानून समय के अनुसार बदलते रहते तथा उनमें संशोधन होते रहते है | आपराधिक मानहानि भी कुछ ऐसे ही विधि का उदहारण है जिसमे निम्न समस्याएं मौजूद
हैं -
1. मानहानि अनिवार्य रूप से एक दीवानी कार्यवाही है न कि आपराधिक प्रक्रिया क्योंकि इससे एक व्यक्ति विशेष की प्रतिष्ठा की अपहानि होती है |
2. आपराधिक मानहानि से सम्बंधित कानून, भाषण एवं अभिव्यक्ति की सवतंत्रता पर अनुचित प्रतिबंध लगाते हैं जो कि भारतीय संविधान के अनुछेद 19 (2) के क्षेत्र से भी बाहर है |
3. हालांकि, प्रतिष्ठा की सुरक्षा एक उचित लक्ष्य है, लेकिन व्यावहारिक रूप से, कानूनों का दुरुपयोग लोगों द्वारा राजनीतिक स्कोर को अपने प्रतिद्वंद्वियों के साथ सुलझाने और उत्पीड़न और धमकी के लिए उपकरण के रूप में भी किया जाता है।
4. एक लोकतांत्रिक राजनीति में, लोक मत, लोक धारणा, लोक आलोचना, कार्यकारी कार्रवाई (executive actions) को मार्गदर्शन और नियंत्रित करने के लिए तीन मौलिक स्तंभ हैं, और यदि इनको को आपराधिक अभियोजन शुरू करने से गुमराह या फटकार या बाध्य किया जाता है, तो यह एक स्वस्थ एवं परिपक्व लोकतंत्र के विकास को प्रभावित करेगा।
5. आपराधिक मानहानि एक सजा का डर (chilling effect) है क्योंकि यह अभिव्यक्ति की आजादी को दबाता है, इसीलिए महज आपराधिक अभियोजन कार्यवाही की चेतावनी सत्य को प्रकाशित होने से दबाने के लिए पर्याप्त है |
6. स्वतंत्रता और मुक्त भाषण के मौलिक अधिकार संविधान के अनुसार पूर्ण (absolute) नहीं मगर नियंत्रित हैं।लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि नियंत्रण के नाम पर भाषण की स्वतंत्रता जो कुछ सरकारी कार्यों की आलोचना से संबंधित है, को चुप किया जा सकता है।
7. भारतीय दंड संहिता के जनक लॉर्ड मैकॉले का मानना था कि जब किसी व्यक्ति पर आपराधिक मानहानि का आरोप लगाया जाता है तो वह यह तर्क देने में सक्षम होना चाहिए कि उसने जो भी कहा या लिखा वह सच था। मानहानि के वर्तमान कानून का विवाद यह है कि संविधान लागू होने के बावजूद भी सत्य, आपराधिक मानहानि के लिए एक पूर्ण बचाव नहीं है। यह केवल एक बचाव है यदि अभियुक्त यह साबित कर देता है कि जो कुछ भी अपमानजनक बयान उसने बोला या लिखा है वह लोक कल्याण में है | अर्थात सत्य का आपराधिक मानहानि का एक पूर्ण बचाव न होना एक बहुत महत्वपूर्ण मसला है |
8. जैसा कि अपवाद 1 में बताया गया है कि सत्य बात का लांछन लगाया जाना या प्रकाशित किया जाना जो लोक कल्याण के लिए उपेक्षित है, मानहानि नहीं है | लेकिन सत्य को न्याय का पहला मूल तत्त्व माना जाता है | दूसरे शब्दों में सत्य के सिद्धांत को केवल लोक कल्याण के रूप से सीमित करना एक व्यक्ति के स्वतंत्र भाषण एवं अभिव्यक्ति पर एक आधारहीन प्रतिबंध है।
सुझाव
मानहानि के विधि को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए सुझाव निम्नलिखित है -
1. मानहानि अनिवार्य रूप से दीवानी मामला (civil matter) बनाया जाना चाहिए |
2. सच्चाई को आपराधिक मानहानि में पूर्ण रूप से एक बचाव (defence) बनाया जाना चाहिए |
3. मीडिया को नकली और झूठी खबर नहीं फैलाना चाहिए तथा विधान मंडल को मीडिया को अंकुश में रखने के लिए कड़े नियम और कानून बनाने चाहिए |
4. जो लोग सच्चाई को जानबूझकर दबाने की कोशिश करते हैं ,उनके खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान होना चाहिए।
5. सिविल रेमेडी (civil remedy) को पुनर्गठित (restructured) किया जाना चाहिए ताकि लोगों को दीवानी मानहानि के मामलों को दर्ज करने के लिए आकर्षित किया जा सके |
6. भाषण की आजादी तथा प्रतिष्ठा के अधिकार को संतुलित करने के लिए दीवानी उपाय (सिविल रेमेडी ) पर्याप्त होना चाहिए।
भारत में मानहानि एवं पत्रकारिता
3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस या विश्व प्रेस दिवस मनाया जाता है । भारत विगत वर्ष में विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक रैंकिंग पर दो रैंक से फिसल गया। Reporters Without Boarder (RWB), एवं Reporters Sans Frontiers (RSF) द्वारा संकलित, 2018 वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स पत्रकारों के प्रति बढ़ती कड़वाहट को दर्शाता है। RWB or RSF की रिपोर्ट के अनुसार 180 देशों में से भारत 2016 में अंतर्राष्ट्रीय प्रेस आज़ादी सूचकांक में 133 स्थान पर था, 2017 में 136 स्थान पर था एवं 2018 में 138 स्थान पर है, जो यह दर्शाता है कि मीडिया की बोलने की आज़ादी को लगातार दबाया जा रहा है | मीडिया का मुँह बंद कराने के बढ़ते मामलों के साथ, प्रेस स्वतंत्रता में बाधा डालने वाले नियमों की पुनरीक्षा की आवश्यकता है | राजनीतिक नेताओं द्वारा खुले तौर पर प्रोत्साहित किए जाने वाले मीडिया के प्रति प्रतिद्वंद्विता लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा बनती जा रही है |
साल 2017 को पत्रकारिता के लिए खतरनाक परिभाषित करते हुए, The Hoot[4] ने 27 पुलिस गिरफ्तारी और दाखिल करने के मामले, 46 हमले के मामलों और 11 पत्रकारों की हत्या की के मामलों की सूचना दी | इनमें एक वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या का मामला भी शामिल है |
ऐसा माना जाता है कि, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं (activists) को धमकाने और चुप करने के लिए आपराधिक मानहानि कानून का उपयोग करना बहुत आसान है। प्रेस की आजादी का मौलिक अधिकार भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में निहित है, जो कि राजनीतिक स्वतंत्रता और लोकतंत्र की उचित कार्यप्रणाली के लिए आवश्यक है।
वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश का तर्क था कि ऐसा कानून जो मीडिया की स्वतंत्रता के विरुद्ध हो वह लोकतांत्रिक देश में मौजूद नहीं होना चाहिए |
पत्रकारिता में आपराधिक मानहानि के मामले
1. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के चैनल के The Wire के विरूद्ध आपराधिक मानहानि का मामला
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के वेबसाइट the Wire के पत्रकार रोहिनी सिंह ने "The Golden Touch of Jay Amit Shah"[5] के नाम से खबर को प्रकाशित किया जिसमे पत्रकार ने बीजेपी के राष्टीय अध्यक्ष माननीय अमित शाह के बेटे जय अमित शाह की स्वामित्व वाली कंपनी का सालाना टर्नओवर नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री और अमित शाह के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद, एक साल के भीतर सोलह हजार गुना, पचास हजार से अस्सी करोड़ (50,000 to 80,00,00,000), बढ़ जाने का जिक्र किया है | इसके अलावा कंपनी को पहले वाले साल 2013 में 6,230 और 2014 में 1,724 का नुकसान हुआ था और कंपनी ने वित्तीय वर्ष 2014-15 में महज 50,000 रुपये के राजस्व पर 18,728 रुपये का लाभ दिखाया गया | रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ये जानकारी रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) में दाखिल किए गए दस्तावेजों से सामने आई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अक्टूबर, 2016 में जय शाह की कंपनी ने अपनी व्यापारिक गतिविधियों को अचानक पूरी तरह से बंद कर दिया।
रिपोर्ट प्रकाशित करने से पहले जब रोहिणी सिंह ने जय शाह से सवालों के जवाब मांगे जिसके जवाब में जय शाह के वकील माणिक डोगरा ने द वायर को चेतावनी दी, जिसमें उन्होंने लिखा कि यदि आप या प्रिंट में कोई भी व्यक्ति, इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल मीडिया किसी भी बदनामी / या झूठी / अपमान को प्रसारित करता है / जिसमें गोपनीयता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है / या उसे बदनाम करता है, तो ऐसे व्यक्ति / इकाई जिसमें ऐसे किसी भी प्रकार का अपमानजनक तथ्य / अपमानजनक कथन की पुनरावृत्ति होती है या प्रसारित होती है, ऐसी स्थिति में श्री जय शाह को आपराधिक और दीवानी मानहानि का मुकदमा चलाने का अधिकार है |
अचानक हुई आयवृद्धि को लेकर वायर ने जब रिपोर्ट को प्रकाशित किया तो जय शाह ने वायर के खिलाफ अहमदाबाद के मेट्रोपॉलिटन कोर्ट में भारतीय दंड संहिता की धारा 500 (आपराधिक मानहानि), 109 (दुष्प्रेरण), 39 (स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुंचाने) और 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत का मामला दर्ज कराया | बाद में जय शाह ने 100 करोड़ रूपए का सिविल केस भी दर्ज किया |
अहमदाबाद में एक सिविल कोर्ट ने जे शाह की कहानी की मूल प्रकरण को ताजा पुन: पेश करने या चर्चा करने से प्रतिबंधित करने के लिए वायर के खिलाफ एक अस्थायी (ad interim) आदेश दिया। वायर ने ad interim आदेश को चुनौती दी |
कहानी के प्रकाशन के तुरंत बाद अहमदाबाद में सिविल कोर्ट द्वारा शाह को एक अदालत ने निषेधाज्ञा आदेश दिया था जो कि उसी अदालत द्वारा उलट दिया गया I लेकिन बाद में गुजरात उच्च न्यायालय ने इसे फिर से हटा दिया। वायर ने सुप्रीम कोर्ट में उस फैसले के विरुद्ध अपील की है लेकिन मामला अभी तक सूचीबद्ध नहीं हुआ है।
द वायर ने इसके खिलाफ दर्ज आपराधिक मानहानि के आरोपों को रद्द करने की मांग याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दायर की | दोनों पक्षों के तर्क सुने गए तथा मामले को स्थगित कर दिया | प्रधान न्यायमूर्ति श्री दीपक मिश्रा ने कहा कि कभी-कभी पत्रकार ऐसी सामग्री प्रकाशित करते है कि वह कोर्ट की अवमानना की श्रेणी में आता है | प्रधान न्यायमूर्ति ने यह भी कहा कि "हम उम्मीद करते हैं कि मीडिया जिम्मेदार होना चाहिए, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तो अधिक जिम्मेदार होना चाहिए।"
जब भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने दोनों पार्टियों के बीच किसी भी समझौते की बात की तो वायर के वकील नित्या रामकृष्णन ने कहा कि यह रिपोर्ट नागरिकों को सूचित करने के लिए लोक कर्तव्यों के निर्वहन में प्रकाशित एक तथ्यात्मक रिपोर्ट थीI अतः इस प्रकार यह स्पष्ट नहीं था कि इन परिस्थितियों में क्या समझौता हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने 18 अप्रैल 2018 को जय अमित शाह द्वारा दायर समाचार पोर्टल के खिलाफ आपराधिक मानहानि की कार्यवाही पर रोक को जारी रखते हुए जुलाई के पहले सप्ताह तक को स्थगित कर दिया था।
2. इकनोमिक पॉलिटिकल वीकली के पूर्व संपादक प्रंजॉय गुहा ठाकुरता एवं उसके साथियों के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला
इकनोमिक पॉलिटिकल वीकली के पूर्व संपादक श्री प्रंजॉय एवं उनके साथियों ने मिलकर एक रिपोर्ट, "Modi Government's Rs 500-Crore Bonanza to the Adani Group"[6], प्रकाशित किया था I इसमें इन्होंने जिक्र किया कि वर्तमान सरकार ने विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone) नियमों में बदलाव केवल अडानी ग्रुप ऑफ़ कम्पनीज को लाभ पहुंचाने के लिए किया है |
इन बदलावों से अडानी ग्रुप ऑफ़ कम्पनीज को 500 करोड़ का फायदा होगा | श्री गुहा ने इससे सम्बंधित कुछ सवालों के जवाब वित्त मंत्रालय (वित्त मंत्री अरुण जेटली समेत) और उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय (राज्य मंत्री निर्मला सीतारमण सहित मंत्रालय) के शीर्ष अधिकारियो से मांगे तो उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया |
अगस्त 2016 में, विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone) नियमों, 2016 को विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम, 2005 के तहत धनवापसी के दावों पर प्रावधान डालने के लिए वाणिज्य विभाग द्वारा संशोधन किया गया था। विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम, 2005 में इस संशोधन से पहले कोई धनवापसी के दावों का प्रावधान नहीं था |
रिपोर्ट के लेखकों ने यह भी लिखा कि उनको प्राप्त विश्वसनीय जानकारी के अनुसार, संशोधन विशेष रूप से अडानी पावर लिमिटेड (एपीएल) को 500 करोड़ रुपये के सीमा शुल्क (custom duty) पर धनवापसी का दावा करने का अवसर प्रदान करने के लिए किया गया था।
अडानी पावर लिमिटेड ने दावा किया है कि उसने कच्चे माल और उपभोग्य सामग्रियों पर सीमा शुल्क (कस्टम ड्यूटी) का भुगतान किया है - यानी, बिजली उत्पादन के लिए कोयले का आयात किया है।
हालांकि, ईपीडब्ल्यू को लीक किए गए दस्तावेजों से स्पष्ट रूप से संकेत मिलता है कि वास्तव में, एपीएल ने कच्चे माल और उपभोग्य सामग्रियों पर (कस्टम ड्यूटी) भुगतान नहीं किया था, जो कि मार्च 2015 के अंत तक लगभग 1000 करोड़ रुपये बकाया थे।
इससे यह साफ दिखाई देता है कि सीमा शुल्क (कस्टम ड्यूटी) पर कंपनियों को धनवापसी का दावा करने के प्रावधान को सम्मिलित करने के लिए स्पेसल इकनोमिक ज़ोन्स के नियमों में संशोधन करके, वाणिज्य विभाग अडानी पॉवर लिमिटेड को ड्यूटी पर धनवापसी का दावा करने की अनुमति दे रहा है जिसका पहले कभी भुगतान भी नहीं किया गया था |
लेकिन जब ईपीडब्ल्यू पर अडानी पावर लिमिटेड ने दबाव डाला जिसके फलस्वरूप ईपीडब्ल्यू ने प्रंजॉय को न्यूज़ रिपोर्ट को हटाने के लिए दबाव डाला और अंत में आकर प्रंजॉय को अपने सम्पादक पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा | इसके बाद ईपीडब्ल्यू अपनी वेबसाइट से रिपोर्ट को हटा दिया था। द वायर ने अनुमति लेकर रिपोर्ट को पुनः प्रकाशित किया हालांकि इस पर द वायर को भी दीवानी मामले का सामना करना पड़ा |
इस रिपोर्ट के विरुद्ध अडानी पावर लिमिटेड ने दीवानी मानहानि का दावा (suit) किया है लेकिन सिविल न्यायाधीश ने दावा रद्द किया तथा मामले का निर्णय प्रंजॉय तथा द वायर के पक्ष में आया |
इसके बाद अडानी पावर लिमिटेड ने आपराधिक मानहानि का मुक़दमा दर्ज कराया जो की कोर्ट में अभी भी लंबित है |
3. एंकर अर्नब गोस्वामी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा
5 जुलाई 2017 को कांग्रेस नेता शशि थरूर ने रिपब्लिक टीवी प्रधान के संपादक के खिलाफ आपराधिक मानहानि का केस भारतीय दंड संहिता की धारा 499 व 500 के तहत दर्ज कराया | शशि थरूर ने अपनी शिकायत में कहा की श्री अर्नब गोस्वामी ने उनकी पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत से संबंधित खबरों को प्रसारित करते हुए कथित रूप से उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की है जिससे उसकी प्रतिष्ठा की अपहानि हुई |
संक्षेप में सुनंदा हत्या मामला इस प्रकार है-
17 जनवरी, 2014 को सुनंदा पुष्कर की मृत्यु हो गई। वह चिकित्सा उपचार से गुजर रही थीं और पिछले दिन दिल्ली पहुंची थीं। शशि थरूर और पुष्कर दोनों होटल लीला में ठहरे थे | क्योंकि उनके घर का नवीनीकरण हो रहा था।
सुनंदा पुष्कर को आखिरी बार 3.30 बजे होटल लीला में जिंदा देखा गया था, जबकि थरूर एआईसीसी (AICC) सत्र में भाग ले रहे थे। जब शशि थरूर घर पहुंचे तो उन्हें अपनी पत्नी का शव मिला |
जांचकर्ताओं ने उस समय बताया था कि पुष्कर के शरीर में लगभग 15 चोटों के निशान थे, जिनमें उनके हाथ पर एक काटने का निशान शामिल था
पुष्कर की शव रिपोर्ट में कहा गया था कि मृत्यु का कारण अप्राकृतिक था। AIIMS रिपोर्ट[7] के अनुसार सुनंदा की मृत्यु विषाक्त पदार्थ के उपभोग करने से हुई है | पुष्कर की शव रिपोर्ट (ऑटोप्सी रिपोर्ट[8]) ने कहा था कि मृत्यु का कारण अप्राकृतिक था। रिपोर्ट में यह भी संकेत दिया गया कि उसकी मृत्यु अधिक मात्रा दवा खाने से हुई थी, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि क्या उन्हें जबरन इस विषाक्त पदार्थ या अधिक मात्रा में दवा दिया गया था या क्या स्वेच्छा से उन्होंने उपभोग किया था?
श्री अर्नब गोस्वामी ने कुछ सबूतों के माध्यम से श्री शशि थरूर को सुनंदा की हत्या का कारण बताया तथा उन्होंने यह भी कहा की वह आत्महत्या नहीं बल्कि एक हत्या थी |
श्री शशि थरूर ने अपनी शिकायत में कहा कि इससे उनकी अपहानि हुई है तथा उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है |
आपराधिक मामला दर्ज करने से पहले श्री थरूर ने अर्नब के खिलाफ दीवानी मामला दर्ज किया था | वो भी अभी तक कोर्ट में लंबित है | सुनंदा हत्या मामले की जांच अभी भी चल रही है |
4. समाचार पोर्टल द वायर के खिलाफ अडानी समूह ने मानहानि का मामला
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रमुख अमित शाह के बेटे जय शाह के बाद, अडानी समूह ने 19 जनवरी 2018 को समाचार पोर्टल द वायर और उसके पत्रकारों के खिलाफ अहमदाबाद के एक मजिस्ट्रेट अदालत में आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज किया है।
अडानी पेट्रोनेट (दहेज) पोर्ट प्राइवेट लिमिटेड ने फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिस्ट्स, जो द वायर चलाता है, पर आरोप लगाया कि, द वायर और उसके छह पत्रकारों ने जानबूझकर कंपनी की छवि को बदनाम करने के लिए अपनी वेबसाइट पर एक अपमानजनक लेख प्रकाशित किया है।
द वायर पत्रकार नूर मोहम्मद ने एक रिपोर्ट “Does It Make Economic Sense for IOC and Gail India to Invest in Adani’s LNG Terminals?[9]” में जिक्र किया है कि पिछले साल, राज्य के स्वामित्व (state owned) वाली इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी) और गेल इंडिया ने ओडिशा और गुजरात में अडानी समूह द्वारा प्रचारित एलएनजी टर्मिनल में हिस्सेदारी लेने का फैसला किया है।
विश्लेषकों का कहना है कि प्रमोटरों के बजाय वित्तीय निवेशकों के रूप में इन परियोजनाओं में भाग लेने से, सार्वजनिक क्षेत्र इकाई भारी-ऋणी अदानी समूह को और निवेश करने में मदद करेंगे। हालांकि, इस प्रक्रिया में उन्हें अपने बैलेंस शीट पर अधिक ऋण लेना होगा, जो उनके लीवरेज और भविष्य की निवेश क्षमता में वृद्धि कर सकते हैं |
रिपोर्ट में यह भी लिखा कि अडानी समूह के बकाया कर्ज 72,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गए हैं, जो देश के किसी भी कॉर्पोरेट समूह के लिए सबसे ज्यादा है। ग्रुप कंपनी अडानी हार्बर सर्विसेज और अडानी पेट्रोनेट (Dahej) पोर्ट पहले से ही एनसीएलटी (NCLT) के अहमदाबाद बेंच में दिवालियापन (bankruptcy) की कार्यवाही का सामना कर रहे हैं।
“सार्वजनिक क्षेत्र इकाई भविष्य में निवेश करने के लिए 'भारी ऋणी अडानी समूह' की मदद करेंगे", "एक सार्वजनिक क्षेत्र इकाई इस तरह की बड़ी हिस्सेदारी को कैसे औचित्य दे सकता है जिससे अप्रत्यक्ष रूप से निजी क्षेत्र की कंपनी को वित्त पोषित करने में मदद मिलती है जो पहले से ही बैंकों के ऋणी है?
अपनी याचिका में, अडानी समूह ने आरोप लगाया कि "Does It Make Economic Sense for IOC and Gail India to Invest in Adani’s LNG Terminals?" को अडानी पावर महाराष्ट्र लिमिटेड की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के एकमात्र इरादे से प्रकाशित किया गया था ताकि उसको "सस्ता प्रचार" मिल सके।
शिकायत में यह कहा गया कि "अभियुक्त, शिकायतकर्ता को आईओसी (IOC) और गेल इंडिया (GAIL India) के फैसले से अडानी के एलएनजी टर्मिनलों (LNG Terminals) में निवेश करने के लिए गलत तरीके से जोड़ा है। शिकायतकर्ता का ऐसे कोई टर्मिनलों में स्वामित्व, संचालित या प्रबंधित नहीं होता है। शिकायतकर्ता का आईओसी (IOC) और गेल इंडिया (GAIL India) के फैसले से अडानी के एलएनजी टर्मिनल में निवेश करने से कुछ लेना देना नहीं है। ऐसे टर्मिनल मुंद्रा (Mundra) और धामरा परियोजनाओं (Dhamra Projects) का हिस्सा हैं। उन्हें अलग-अलग कंपनियों (विशेष उद्देश्य वाहन) द्वारा लागू किया जा रहा है, शिकायतकर्ता द्वारा नहीं।"
शिकायत में यह भी कहा गया है कि फाउंडेशन ने शिकायतकर्ता (अडानी पेट्रोनेट) और अडानी समूह की पूरी तरह से निवेशकों और वित्तीय संस्थानों में अशांति पैदा करने के लिए जानबूझकर यह रिपोर्ट प्रकाशित किया है |
मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 499 (मानहानि) और 500 (मानहानि की सजा) के तहत दायर किया गया था तथा दायर याचिका में कहा गया कि - यह रिपोर्ट शिकायतकर्ता के खिलाफ अरुचि, क्षति पहुंचाने तथा द्वेष पैदा करने के लिए, जिसे "अच्छी तरह से विचार-विमर्श तथा साजिश" से कंपनी की छवि को खराब करने के लिए प्रकाशित किया गया |
अहमदाबाद के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट एस.के. गधवी ने द वायर के पत्रकारों तथा संपादकों को 19 अप्रैल 2018 को बुलावा[10] (summon) जारी किया तथा उनसे 27 अप्रैल को बुलावा (summon) का जवाब देने के लिए कहा | मामला अभी भी कोर्ट में लंबित है |
5. ज़ी मीडिया समूह (Zee Media Group) ने कोबरापोस्ट (Cobrapost) व तीन अन्य वेब पोर्टलों को मानहानि के कानूनी नोटिस भेजे |
ज़ी मीडिया ग्रुप (Zee Group) ने, "ऑपरेशन 136-II" नामक एक कथित स्टिंग ऑपरेशन पर कोबरापोस्ट को मानहानि के लिए कानूनी नोटिस[11] 1 जून 2018 को भेजा है। यह नोटिस कोबरापोस्ट के ऑपरेटर, इसके संस्थापक-संपादक अनिरुद्ध बहल और संवाददाता पुष्प शर्मा को जारी किया गया है।
समूह ने अन्य पोर्टलों पर कोबरापोस्ट ऑपरेशन से संबंधित समाचार रिपोर्ट प्रकाशित करने के लिए तीन अन्य मीडिया प्लेटफॉर्म – The Wire, The Quint, Bhadas4media- को भी कानूनी नोटिस भेजे हैं।
ऑपरेशन 136 -II क्या है ?
ऑपरेशन 136 के दूसरे भाग में, कोबरापोस्ट ने मुख्यधारा और क्षेत्रीय, सबसे बड़े और छोटे, सबसे पुराने और नए, दो दर्जन से अधिक मीडिया घरो के मालिकों और उच्च रैंकिंग कर्मियों (high-ranking personnel) का खुलासा किया है।
अभियान चलाने के लिए सहमत मीडिया हाउस- Times of India, India Today, Hindustan Times, Zee News, Network 18, Paytm, Bharat Samachar, Suvarna, Bartman, Dainik Samvad, Star India, ABP News, Dainik Jagaran, Radio One, Red FM, Lokmat, ABN Andhra Jyothy, TV5, Dinamalar, Big FM, K News, India Voice, The New Indian Express, MVTV and Open magazine.
कोबरापोस्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित लेख[12] में कहा गया कि "बड़े डैडीज" भी कोई विशेष अभियान चलाने के लिए सहमति देने में ज़्यादा विचार नहीं करते जो कि न केवल नागरिकों के बीच सांप्रदायिक सद्भाव (Communal harmony) तोड़ने की क्षमता रखते हैं बल्कि किसी विशेष पार्टी के पक्ष में चुनावी परिणाम झुकाने से जुड़े अभियान चलाने में भी पीछे नहीं हटते हैI तथापि वे ऐसा तभी करेंगे अगर उनको सही कीमत चुकाई जाएगी | कोबरापोस्ट वेबसाइट को भेजे कानूनी नोटिस[13] में तथाकथित स्टिंग ऑपरेशन को "एक योजनाबद्ध साजिशऔर आत्म-सेवा का एक सेट (a set of self-serving), झूठी , गढ़ी हुई और बेकार लेखनी का टुकड़ा (piece of writing) है जो स्वयं में छेड़छाड़, तोड़ा -मरोड़ा और संपादित रिकॉर्डिंगपर आधारित है।"
कानूनी नोटिस में कहा गया है कि "प्रत्याशित प्रेस विज्ञप्ति और स्टिंग ऑपरेशन में, जानबूझकर धोखाधड़ी की गलत व्याख्याएं निहित हैं और वास्तविक तथ्यों का मनगढ़ंत और गढ़ा हुआ संस्करण प्रस्तुतीकरण किया गया है ”।
नोटिस में कहा गया है कि कोबरापोस्ट ने न केवल " रिकॉर्ड किये गए वीडियो को न केवल तोड़ मरोड़ कर जानबूझकर धोखे से संपादित किया बल्कि एक प्रचारित और संकीर्ण कहानी प्रोजेक्ट करने के लिए झूठी और गलत जानकारी का भी उपयोग किया, जो कि वास्तविक घटना से कोसो मील दूर है |" नोटिस के माध्यम से ज़ी ग्रुप (Zee Group) ने कोबरापोस्ट वेबसाइट से तथाकथित स्टिंग ऑपरेशन से संबंधित सभी लेखों को तत्काल हटाने, तथा लिखित में बिना शर्त माफी मांगने और मानहानिकारक सामग्री के किसी भी प्रकार से पुन: परिसंचरण, पुन: प्रकाशित या पुनरुत्पादन को रोकने के लिए कहा |
ज़ी मीडिया ग्रुप (Zee Media Group) ने कोबरापोस्ट को कानूनी नोटिस की शर्तों का अनुपालन करने में विफल होने पर, आर्थिक क्षति सहित दीवानी और आपराधिक कार्यवाही की चेतावनी है |
द वायर को कानूनी नोटिस[14] 31 मई को दिया क्योंकी वायर ने 26 मई, 2018, और 28 मई 2018 क्रमशः दो न्यूज़ रिपोर्ट Cobrapost Sting: Big Media Houses Say Yes to Hindutva, Black Money, Paid News[15] और Cobrapost Sting: From Promoting Yogi to Running Down Akalis, Zee’s Journalism Laid Bare 2018[16] को प्रकाशित किया, जो कोबरापोस्ट वेबसाइट द्वारा स्टिंग ऑपरेशन से सम्बंधित समाचार पर आधारित था| वायर को नोटिस में कहा गया कि "ऐसा प्रतीत होता है कि अपमानजनक सामग्री वाले लेखों (articles) को आपने हमारे ग्राहक के खिलाफ पूरी तरह से दुर्भावनापूर्ण, झूठे, गलत और अपमानजनक आरोपों के द्वारा बदनाम करने के विशिष्ट ज्ञान और आशय (intention) से प्रकाशित किया है।"
नोटिस में कहा गया है कि 'वायर' ने कोबरापोस्ट द्वारा लगाए गए आरोपों को बिना किसी उचितता और जाँच पड़ताल के पुनः उत्पादित किया है। ZMCL (Zee Media Corporation Limited) ने वायर को लेखो को हटाने तथा बिना किसी शर्त माफ़ी मांगने को कहा और ऐसा नहीं करने पर उसके खिलाफ दोनों दीवानी और फौजदारी मानहानि के मामले दर्ज करने की चेतावनी दी |
The Quint को नोटिस[17] ऑपरेशन 136-II से सम्बंधित समाचार, Cobrapost: Top Media Houses Agreed to Run Pro-Hindutva Paid News[18] एवं Cobrapost Sting: If Paid, Zee Says Anchors Will Support Hindutva, के नामो से प्रकाशित करने पर 31 मई 2018 को दिया | तथा उनकी वेबसाइट पर प्रकाशित लेखो को हटाने तथा बिना किसी शर्त माफ़ी मांगने को कहा और ऐसा नहीं करने पर उनके खिलाफ दीवानी एवं फौजदारी मानहानि के मामले दर्ज करने की चेतावनी दी |
Bhadas4Media को नोटिस[19] को ऑपरेशन 136-II से सम्बंधित समाचार, रीजनल चैनल्स के CEO पुरुषोत्तम वैष्णव समेत जी मीडिया के कई चेहरों से नकाब हटा, देखें वीडियो[20], के नाम से प्रकाशित करने पर 31 मई 2018 को दिया तथा वेबसाइट पर प्रकाशित लेख को हटाने तथा बिना किसी शर्त माफ़ी मांगने को कहा और ऐसा नहीं करने पर उनके खिलाफ दीवानी एवं फौजदारी मानहानि के मामले दर्ज करने की चेतावनी दी I
निष्कर्ष
मानहानि एक महत्वपूर्ण कानून है जो व्यक्ति की प्रतिष्ठा, जो कि जीवन के अधिकार में निहित है, के अधिकार की सुरक्षा करता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है की हम प्रतिष्ठा की आड़ में सच्चाई को छुपा दे, जो कि न्याय का मूल शील है |
हमने ऊपर देखा की किस तरह बड़े राजनितिक नेता तथा बड़े कॉर्पोरेट हाउसेस ने विभिन्न पत्रकारों तथा न्यूज़ पोर्टल्स के खिलाफ आपराधिक मानहानि के मामले दर्ज करवाए है जो कि मीडिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को धमकाने के लिए किये हैं जो कि उनके मौलिक अधिकारो का उल्लंघन है| उनको अपनी रिपोर्ट को प्रकाशित करने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए हालाँकि प्रत्युत न्यूज़ मीडिया तथा पत्रकारो को झूठी तथा नकली खबरों को प्रकाशित करने से बचने चाहिए |
जैसा कि पहले कहा गया कि प्रतिष्ठा के अधिकार और भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच तालमेल के साथ साथ संतुलन होना चाहिए | दोनों के बीच ऐसा संतुलन होना चाहिए जिससे कि व्यक्ति दूसरे की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाए बिना अपने भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का
प्रभावी ढंग से उपयोग कर सके |
[1] सुब्रह्मण्यम स्वामी बनाम केंद्र सरकार, (2016) 7 SCC 221.
[2] न्यायाधीश के. एस. पुट्टास्वामी एवं अन्य बनाम भारत एवं अन्य, (2017) 10 SCC 1.
[3] सुब्रह्मण्यम स्वामी बनाम केंद्र सरकार, (2016) 7 SCC 221. महाराष्ट्र राज्य बनाम पब्लिक कंसर्न ऑफ़ गवर्नेंस ट्रस्ट, AIR 1989 SC 714.
[4] Media Freedom and Freedom of Expression in 2017. (2018). [report] India: The Hoot. Available at: http://www.thehoot.org/public/uploads/filemanager/media/THE-INDIA-FREEDOM-REPORT-.pdf [Accessed 22 Jun. 2018].
[5] Rohini Singh (2018). The Golden Touch of Jay Amit Shah. [online] The Wire. Available at: https://thewire.in/business/amit-shah-narendra-modi-jay-shah-bjp [Accessed 21 Jun. 2018].
[6] Paranjoy Guha Thakurta, Advait Rao Palepu, Shinzani Jain and Abir Dasgupta The wire (2018). Modi Government's Rs 500-Crore Bonanza to the Adani Group. [online] Available at: https://thewire.in/business/modi-government-adani-group [Accessed 21 Jun. 2018].
[7] The Hindu. (2016). AIIMS report: Sunanda Pushkar died of poisoning. [online] Available at: http://www.thehindu.com/news/national/AIIMS-report-Sunanda-Pushkar-died-of-poisoning/article14013999.ece [Accessed 22 Jun. 2018].
[8] India Today. (2014). 10 things you should know about Sunanda Pushkar and her death. [online] Available at: https://www.indiatoday.in/india/north/story/sunanda-pushkar-death-10-things-you-should- know-199009-2014-07-02 [Accessed 22 Jun. 2018].
[9] The Wire. (2018). Does It Make Economic Sense for IOC and Gail India to Invest in Adani’s LNG Terminals?. [online] Available at: https://thewire.in/business/indian-oil-gail-india-adani-lng-terminals [Accessed 22 Jun. 2018].
[10]The Indian Express. (2018). Court issues summons to The Wire in defamation case filed by Adani Group. [online] Available at: https://indianexpress.com/article/india/court-issues-summons-to- the-wire-in-defamation-case-filed-by-adani-group-5133571/ [Accessed 22 Jun. 2018].
[11] https://timesofindia.indiatimes.com/photo/64418482.cms.
[12] Cobrapost (2018). Press Release: Operation 136: Part II. [online] Available at: https://cobrapost. com/blog/Press-Release-Operation-136-Part-II/1063 [Accessed 22 Jun. 2018].
[13] https://timesofindia.indiatimes.com/photo/64418482.cms.
[14] https://timesofindia.indiatimes.com/photo/64418524.cms
[15]The wire (2018). Cobrapost Sting: Big Media Houses Say Yes to Hindutva, Black Money, Paid News. [online Available at: https://thewire.in/media/cobrapost- sting-big-media-houses-say-yes-to- hindutva-black-money-paid-news [Accessed 22 Jun. 2018].
[16] The Wire. (2018). Cobrapost Sting: From Promoting Yogi to Running Down Akalis, Zee's Journalism Laid Bare. [online] Available at: https://www.thewire.in/media/cobrapost-zee-paid-news-black-money [Accessed 22 Jun. 2018].
[17] https://timesofindia.indiatimes.com/photo/64418511.cms
[18] The Quint. (2018). Cobrapost: Top Media Houses Agreed to Run Pro-Hindutva Paid News. [online] Available at: https://www.thequint.com/news/india/cobrapost-operation-136-part-2-a-sting-operation- on-media-houses [Accessed 22 Jun. 2018].
[19] https://timesofindia.indiatimes.com/photo/64418503.cms
[20]Bhadas4media.com. (2018). रीजनल चैनल्स के CEO पुरुषोत्तम वैष्णव समेत जी मीडिया के कई चेहरों से नकाब हटा, देखें वीडियो | No. 1 Indian Media News Portal. [online] Available at: https://www.bhadas4media. com/ceo-purushottam-vaishnav-ka-khel-dekhiye/ [Accessed 22 Jun.